कविता
कवि की कल्पना जब लेखनी से प्रस्फुटित होती,
भावों में बहकर उद्गारें वनिता का स्वरूप लेती हैं।
मन के सागर को मथकर,शब्दों के निकले अमृत,
होती है रस की संचारें कविता का स्वरूप लेती है।।
रचना- मौलिक एवं स्वरचित
निकेश कुमार ठाकुर
गृह जिला- सुपौल (बिहार)
संप्रति- कटिहार (बिहार)
सं०- 9534148597