कविता
कभी मुश्किलों से हँसकर के मिलिए,
कुछ तो तज़ुर्बा नया कीजिए,
जो चाहते हैं बुरा आपका हो
उनका भला हो दुआ कीजिए,
बुजुर्गों के कदमों में सिर को झुका के
दुआओं की दौलत जमा कीजिए,
कोई माने ना माने गलत रास्ते पर
जानें से सबको मना कीजिए,
धर्म सरहद का घर से निभाते हुए
क़र्ज़ मिट्टी का कुछ तो अदा कीजिए ?