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25 Jan 2017 · 1 min read

कविता

कल- कल करती नदिया कहती ।
जीवन भी एक नदी सी बहती ।

बह गई जो धारा यहाँ से,
लौट कभी क्या आया करती ।

चलना चलते जाना जीवन
रोके पर भी न रूक सकती ।

जिन्दगी थोड़े दिन की होती
दिन दिन है ये घटते जाती ।

रूकना रूक जाना मृत्यु क्षण
उछल उछल चंचल जल कहती ।

जल कण छिटक छिटक लहराती
सुख दुख भी ऐसी हीं होती ।

कल कल छल छल नाद गीत से
नदिया मधुर संगीत सुनाती ।

सब तो अपने हीं होते हैं
सबसे करना प्रीत सिखाती ।

कहती नदिया कल कल करती
झरने जैसी जीवन झरती ।

प्रमिलाश्री

Language: Hindi
843 Views
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