कविता
रोती भारत माँ की सो गई क्यों देशभक्ति सीने में बेचारी है
गुलाम हो गई नेताओं की क्यों राष्ट्रभक्ति संग ईमानदारी है
फ़ना होता नहीं कोई चाहता नेता कोई अब देश जगाने को
बेईमानी दिल में रखते वो वतन बेच खाने की लगी बिमारी है
मेरे यौवन का श्रृंगार थे कभी वीर राणा और छत्रपति शिवा
खुशनसीब हिन्द की हथियार उठाती बेटियाँ लक्ष्मी हमारी है
दिल के स्याह आसमान पर कुछ अक्स आज भी है उभरते
भारत सोने की चिड़िया थी और उसको लूट गया दुराचारी है
अशोक फ़रयाद करता है सोया देश जगा देना मिलकर सब
दो कौड़ी के दाम पर मत बेचो नेता को अपनी सहित्यकारी है
एक शेर गीतिका के लिये भी
माँ सरस्वती की बेटी कहलाये है हिंदी, हिंदी में सब लिखो तुम
शब्दों की करों आरधना लिखो सरल सुगम गीतिका रसधारी है
अशोक सपड़ा की कलम से