कविता
विषय – मकरन्द छंद
विधान~
[ नगण यगण नगण यगण नगण नगण नगण नगण गुरु गुरु]
(111122,111122,11111111,111122)
26 वर्ण,4 चरण,यति 6,6,8,6,वर्णों पर
दो-दो चरण समतुकांत,पहली दूसरी यति अंत तुकान्तता हो तो उत्तम]
हरि हितकारी,
अति छवि प्यारी,
पुनि-पुनि सुमरहुँ,
मन हरषाऊँ।
यशुमति प्यारे,
दरश सुखारे,
सकल जगत तज,
हरि चित लाऊँ।
परम कृपाला
नयन विशाला,
विहरत जहँ-तहँ,
प्रतिदिन ध्याऊँ।
तन-मन वारा,
सकल सहारा,
नमन करत नित,
तव गुण गाऊँ।
भव भय हारी,
विनय हमारी,
हरहुँ सकल दुख,
सद गति पाऊँ।
सब सुख दाता,
सुनहुँ विधाता,
हरत विपद मम,
जग तर जाऊँ।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर