कविता
आज भी पुलवामा का घाव हरा है मेरे जीवन में,
वीर सैनिकों की यादें बैठी है सब मेरे मन में
जो लिपट तिरंगे में घर आए उन सबकी कुर्बानी को,
भूल नहीं सकती हूँ मैं उनकी अमर कहानी को,
देखा था नन्हे हाथों को अर्थी पर फूल चढाए थे,
माँ,बहन बीवी संग बच्चे भी बिलखे थे, चिल्लाये थे,
तुम ही कह दो मित्र मेरे कैसे हम मुस्काएं,
मन है व्यथित हमारा हम कैसे फाग सुनाएं “