कविता
इंतजार मे आँखें तरस रही दिदार एकपल का ही करा दे।
बैचेन लब कुछ कह कर रहे है
जरा ध्यान इधर लगा ले
सज सँवर कर तेरी राह जोट रही
तन्हा दुल्हन तूझमें रमने को तरस रही।
आ अब लौट आ चंद घडी भी साल लगती है
बिन तैरे सारी खूशीया भी निराश लगती है।
सोनु सुगंध –१३/०९/२०१८