कविता
बचपन के वो यार न जाने कहाँ खो गये।
“तु” से “तुम” और फिर आप हो गये।
बडी बडी बातों के राजगार थे जो,
छोटी छोटी बातों पर अब गिले-सिकवे हजार हो गये।
नादान हुआ करते थे जो अब समझदार हो गये।
बचपन के वो यार न जाने कहाँ खो गये।
—सोनु सुगंध –२५/१०/२०१८