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10 Jan 2019 · 1 min read

कविता

बस यूहँ चली जा रही है जिन्दगी एक एक दिन लेकर,
कुछ यादें, एहसास और तजुर्बे देकर।

शौख मरते रहे, जिम्मेदारी बढती रही,
ख्वाहिशें ख्वाब हुयीं, नसीब की लकिरे मिटती रही।
पैसों और परिस्थितियों के खेल मे जिंन्दगी जलती रही।

सही और सच्चे होने की सजा हर घडी मिलतीं रही।
ये करो वो करो कि सलाह रोज मिलती रही।
रहना था बचपन मे उम्र हे के साली रोज बढती रही।

युहीं चलते रहे दिनों दिन ,जिन्दगी की शाम भी ढलती रही।
बस यूहीं चली जा रही थी जिन्दगी एक एक दिन लेकर ।
कुछ यादें अहसास और तजुर्बे देकर।

सोनु सुगंध–३/११/२०१८

Language: Hindi
1 Like · 298 Views
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