कविता
“नूतन वर्ष”
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सभी ये साल नूतन हैं सभी यादें पुरानी हैं,
गुज़र जाएँ यहाँ जो पल कहें अपनी कहानी हैं।
सितम हर रोज़ झेले हैं लगी हर रुत सुहानी है,
कहूँ क्या आपसे यारों चढ़ी सब दिन जवानी है।
किए पहले कई स्वागत नए उपमान तन छाए,
हँसाया नित बहारों ने, नये मधुमास मन भाए।
नहीं सूना हुआ जीवन,खुशी के फूल खिल आए,
यहाँ हर रात मुरझाई ,सुबह नित गीत मिल गाए।
मिला जो शख़्स जीवन में उसे अपना बना डाला,
बना कर प्यार का रिश्ता उसे दिल में बसा डाला।
दिया धोखा ज़माने ने कहूँ क्या आपसे यारों,
कभी दुख में बहुत रोई नया सपना जला डाला।
लिखे सुख-दुख लकीरों में नई सौगात क्या पाई,
लुटाकर आशियाँ अपना खुशी की बात क्या आई।
मिला नायाब तोफ़ा आपको क्या इस ज़माने में,
लिए नव भोर का सूरज अनोखी रात क्या छाई।
बना ऋतुराज पिछले साल को पतझड़ समझते हो,
घटा इक वर्ष जीवन से भुला क्यों हर्ष करते हो।
यहाँ कुल मास बारह हैं वही मौसम वही ऋतु हैं,
भला क्या खास है इसमें जिसे नववर्ष कहते हो।
नया ये साल जीवन में नई पहचान बन आए,
पुराने ग़म भुलाने को अधर मुस्कान बन छाए।
दुआ करती सदा दिल से रहे खुशहाल ये जीवन,
मिले खुशियाँ ज़माने की नया मेहमान बन जाए।
सलामे इश्क नूतन साल तुमको इस ज़माने में,
बसा कर याद में अपनी कहेंगे हम फ़साने में।
मिलेगा क्या किसी को आज फिर हमको सताने में,
बहेंगे आँख से आँसू मिलेगा क्या रुलाने में।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर