कविता
“कशमकश”
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ये कशमकश ये मुश्किलें भी
हमको नाच नचाती हैं,
सुलझ न पाए गुत्थी कोई
उलझन ये बन जाती हैं।
असमंजस का भाव जगातीं,
दिल को ये भटकाती हैं,
मृग शावक से चंचल मन को
व्याकुल ये कर जाती हैं।
बीच भँवर में डोले कश्ती
मंज़िल नज़र न आती है,
व्यवधानों से घिर जाने पर
हिम्मत साथ निभाती है।
कशमकश से व्यथित ना होना
शक्ति हमें बतलाती है,
जो मन जीता वो जग जीता
कर्मठता सिखलाती है।
डॉ. रजनी अग्रवाल “रत्ना”
वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका- साहित्य धरोहर