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2 Sep 2018 · 1 min read

कविता

“एकाएक नयन भर आए”
********************

छू कर मलय पवन ने तन को मीठा सा अहसास दिया
एकाएक नयन भर आए मैंने तुमको याद किया।

पृष्ठ किताबों के जब खोले सूखा एक गुलाब मिला
खामोशी से मौन व्यथा सुन उसने दुख को भाँप लिया
मूक पुष्प से क्या कहता मैं आँसू से ही काम लिया
एकाएक नयन भर आए मैंने तुमको याद किया….।

नेह सरस बहता था दृग से जब हम तुम एक साथ थे
वीणा के तारों से झंकृत मेरे सुर और राग थे
साथ चले थे जिन राहों में उनको मैंने नमन किया
एकाएक नयन भर आए मैंने तुमको याद किया….।

सौंधी माटी की खुशबू जब घर-आँगन को महकाती
भीगा तन-मन गीला आँचल लिए सामने तू आती
केशों से गिरती बूँदों को मैंने कर में कैद किया
एकाएक नयन भर आए मैंने तुमको याद किया….।

जिसको पाया भूल गए हम जो खोया वो याद रहा
कुछ कह पाते कुछ सुन पाते वक्त हाथ से फ़िसल गया
धरती अंबर तरस रहे हैं क्षितिज ताकता ठहर गया
एकाएक नयन भर आए मैंने तुमको याद किया….।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी
संपादिका-साहित्य धरोहर

Language: Hindi
474 Views
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