राम घोष गूंजें नभ में
राग -द्वेष की न बात हो
अपनों से नहीं घात हो
राम घोष गूंजें नभ में
और अवनि में अंजान हो।
मुल्क में अमन का वास हो
साथी सबका विकास हो
युवा नहीं भटके पथ से
वो नींव का शिलान्यास हो।
मजलूम को सलाम हो
माल के नहीं गुलाम हो
बिटिया की पालकी सजे
वतन में ये पैगाम हो ।
सरिता यहां निर्मल बहे
सागर के पग धोती हो
वलात् खनन व्यापार से
अश्रु बहती नहीं धार हो।
वृक्षों का नहीं विनाश हो
वह जीवन विन्यास हो
सिर काटे का डंका बजे
प्रकृति के सब साथ हो।
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शेख जाफर खान