कविता
आज लिखने बैठी में कविता,
शब्दों से भरे झोली के साथ,
पर,
बेचारे शब्द खेल रहे अकड़ – बकड़,
तंग कर रहे मुझे हर पल,
नज़र अंदाज़ कर में इन सब बातों को,
सोचने लगी अपने कविता का विषय,
ऐसे तो कमी नहीं समस्या समाज में,
शायद मिल जाए कोई विषय ,
कभी प्रेम का आया ख़्याल,
पर, दिल बोला तु होगा बदनाम,
फिर सोचा चलो लिखे प्रकृति पर,
देखा जाए कुछ सुंदरता ईश्वर की,
दिल ने किया इशारा,
यार बहुत है लिखने वाले,
तुम हो सके तो कुछ काम कर,
प्राकृति की सुंदरता निखारने के लिए,
चल कुछ कदम आगे बढ़ा,
उसे बचाने के लिए,
ना कर सके तो चुपचाप आराम कर,
बस दिल ने दिया उपदेश,
मैंने रख दिया अपनी कलम कागज़ एक ओर,
और करने लगा आराम,
ओर चाहिए क्या मेरे जैसे आलसी के लिए,
लिखने वाले तेरे आलसी पे ग्रंथ लिख देंगे,
ताने मारते हुए दिल ने कहा