कविता
प्रीत भींगाती थी हर रोज़ केरल की तरह,
आज हमसे रूठ, राजस्थान हो गई,
हसरतें मेरी बिहारी सी हमेशा ही रहीं,
मोहब्बत के नशे में डूबी यूँ पंजाब हो गई,
हम हुए फिर से जवां जब से हुई कश्मीर तुम,
बेवफ़ाई तुम्हारी जैसे आतंकवाद हो गई,
रोक है हर शौक पे मेरे लगी गुजरात सी,
ख़्वाब पाले घूमते हैं आज भी महाराष्ट्र सी,
कर इश्क़ बिन सोच-समझे, हम हुए हरयाणवी,
तुम बग़ावत कर रही बंगाल हो गई,
हाल न पूछो कोई मेरे इस दिल का,
जिंदगी तो अपनी बेहाल हो गई,
बर्फ सी जमी है गम की चादरें कहीं,
कहीं दर्द का पानी ज्यों नैनीताल हो गई।