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19 Feb 2020 · 1 min read

कविता

थाली में फ़ैली दाल में
मक्की की रोटी को चूरते हुए
सनी हुई उँगलियों को चूमते होंठ
अब मौन हैं, सूख गए हैं
नम नहीं हैं टिशू पेपर की तरह.
इनकी औकात भी नहीं है
आज रिवाज़ है डिस्पोजेबल का
प्रयोग करके फेंकने के आदी हम
नसीहतों से सम्हालने वाले बुज़ुर्गों को
कवच की तरह सुरक्षा देते इंसान को
एक पल में कर देते हैं
हाशिये से बाहर-

Language: Hindi
1 Like · 259 Views
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