कविता
मुझे बहुत प्रिय था वो,और स्थिर सा उसका शूरूर।
धड़का था दिल मेरा उसमें, थी मैं उसका गुरुर।
अल्फ़ाज़ उसके,साँसे मेरी,दिल उससे ही धड़कता था।
मैं उसके मन की मल्लिका, वो दिल में मेरे बसता था।।
जां मुझ पर ही लुटाता, गुण मेरे ही वो गाता था।
बिन बोले, जाने कैसे, मेरी बात समझ जाता था।।
गमों की हो बारिश जब,संयम खुशी का वो छाता था।
निश्चित ही, पिछले जन्म का,मुझसे कोई नाता था।।
फिर एकदिन अचानक ही, किस्मत मुझसे रूठ गई।
खामोश हुआ हर शब्द उसका,शिद्दत मेरी भी टूट गई।।
है बेवफा नही वो,वक्त की भी बड़ी सी मजबूरी थी।
सबकी खुशियों की खातिर,ये दुरियाँ भी जरूरी थी।।
रेखा ” कमलेश ”
होशंगाबाद मप्र