कविता
क्या हम आजाद है…
आज भी हम अंधविश्वास
अन्धश्रद्धा में लूट रहे
तांत्रिक नकली संत
देखो अस्मत लूट रहे
बेरोजगारी से दुखी
नारी उत्पीड़न से दुःखी
गरीबी से दुखी
आज भी लोग
सड़क किनारे सोते
न कोई घर है ना ठिकाना
मजदूरी नहीं मिलती
बड़े मंदिरों पर चढ़ता दूध
गरीब के बच्चों को नहीं मिलता
गाँव का मन्दिर सुना हो गया
हम तीर्थों में धन लुटा रहे
मन्दिर पर गाँव में
अकेला पुजारी आता जाता
कहाँ गई एकता भाईचारा
हम सब एकत्र नहीं होते
क्या यही है देश की आज़ादी
जाति धर्म के झगड़े होते
आतंकवाद बढ़ता जाता
क्या हम आजाद है
सोचो हम आजाद है?
कवि राजेश पुरोहित