सपने हो गये चकनाचूर
|कविता !
पहले म्हारै गाँव पधारे कहते जी हजूर ।
कर जोड़कर की वंदगी जिताना हमें जरूर ।।
जीते जी सेवा करूँगा वादे सारे है मंजूर ।
प्रण लेता हूँ माँ की संकट हर करूँगा दूर ।।
प्रपंच में जनता फँसी बना दिया नेता मैसूर ।
जीत का तमगा पहनाया चेहरे में चमका नूर ।।
पतझड़ गया आई बहार वक्त ने बनाया मगरुर ।
उसूलो का धुआं उड़ा दर्पण ने खोया शहूर ।।
फ़र्ज बना खुद़गर्ज़ सपने हो गये चकनाचूर ।
इंतजार में पलके हारी आवाम हो गई मज़बूर ।।
रहनुमा ड़ोली लूट रहे गज़ब बना है दस्तूर ।
पेड़ लगाया आम का उग आया कहाँ से खज़ूर ।।
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शेख जाफर खान