नागफनी बो रहे लोग
नागफनी बो रहे लोग
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नई सुबह के नव सपने संजो रहे लोग ,
गुलाब की जगह नागफनी बो रहे लोग।
पश्चिमी फिजाओ का छाया क्या नशा ,
बिन मद्यपान किये पगला रहे लोग ।
मक्कारी की ये मूरत अब शर्म कर माते,
घोड़े के बदलें खच्चर दौड़ा रहे लोग ।
रस- गोरस को तरसे माँ बहुतेरे ललन,
मदिरा बीच बाजार बिकवा रहे लोग ।
वक्त को बदलो तिजारत रोको यारों ,
निज की दुकान कर्ज से चला रहे लोग ।
शेख जाफर खान