अजन्मा प्रतिकार”
““ अजन्मा प्रतिकार”
—राजा सिंह
मेरे भीतर ,
जन्म ले रहा है एक भ्रूण.
इसका पालन पोषण
मेरा शरीर नहीं ,
वरन करता है
मेरा कुंठित मन ,
और
कुंठित मन का अधार है
बेकारी, भुखमरी,भ्रष्टाचार
और अन्याय तथा शोषण का
फैला हुआ साम्राज्य.
अगर हालत यही रहे तो
भ्रूण बनेगा शिशु ,
और शिशु से जवान ,
जो फिर
शब्द न देकर
देगा रक्त या लेगा रक्त ,
इस असहनीय व्यवस्था का.
इससे व्यवस्था
टूटे या न टूटे, मगर
एक गूंज होंगी
जो इस देश की
गूंगी,बहरी,एवं अंधी
सत्ता सुनेगी ;
और महसूस करेगी
इस देश की
शोषित मानवता
अपने शोषण को .
——-राजा सिंह