कविता : हरि दर्शन बिन
हरि दर्शन बिन चैन नहीं है, रहता हृदय उदास।
खोज़ रही हैं प्यासी आँखें, मिले दीद उल्लास।।
रोम-रोम में भाव मिलन का, प्रभु तेरा मैं दास।
आठों याम नाम सिमरन कर, हो तेरा आभास।।
भक्त पिपासा शाँत करो प्रभु, दूर करो तुम पीर।
महक उठेगी दर्शन पाकर, प्रभु मेरी तक़दीर।।
घोर अँधेरा छाया मन में, आकर करो प्रकाश।
पूरी होगी तुमसे मिलकर, नैनों भरी तलाश।।
सच्चे मन से ध्यान करे जो, स्वप्न बने साकार।
आशा पूरी शबरी की कर, किया बड़ा उपकार।।
सुनते उनकी तुम हो मालिक, जो करता विश्वास।
पूजा का फल मीठा होता, लिए चलूँ अहसास।।
भाव तुम्हारे मैं ज़रिया हूँ, इतनी समझूँ बात।
भरो शुद्धता मन में मेरे, दुवा करूँ दिन-रात।।
विष मन मेरे कभी न आए, रखना सिर पर हाथ।
सच्चाई की राह चलूँ मैं, देना इतना साथ।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना