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10 Jan 2021 · 1 min read

कविता सुपुत्र सूरज मल था जाटों की पहचान

भयाक्रांत मुगलों में थी उसकी वीरता भी एक पहचान
बदनसिंह डांगी का सुपुत्र सूरजमल जाटों की थी जान

जहाँ आभाव भी गर्दिशों में दम घोट रहे थे गला अपना
नयन अश्रु सुख गए थे तो भरतपुर से पैदा हुआ जवान

तोपें भी ना तोड़ पायी लोहगढ़ का किला जिसके यारों
जाटों का वो प्लूटो कहलाता राजा था वो भी एक महान

सूरज सा तेज जिसमें जिस्म अग्नि से बना हुआ जिसका
सूरजमल नाम जिसका स्वतन्त्र हिन्दू राज्य उसका निशान

ब्राह्मण की बेटी हरजीत ने खून लिखा खत से बचाले मुझे
वीर योद्धा हिंदुत्व के रक्षक तू है मेरे पिता तुल्य ही सम्मान

दिल्ली के लालकिले पे चढाई कर डाली बेटी के लिए फिर
ब्राह्मण के आँगन की नन्ही चिड़िया ऊँची उडी फिर उड़ान

इतिहास भले ही भूल जाए इस लोहागढ के लोहपुरुष को
पर नहीं भूलेगा कभी इस वीर योद्धा को ये मेरा हिन्दुस्तान

शेरनी का जिसने दूध पिया हो शेर ही कहलाता सदा वो
भारत माँ की बगिया की सूरजमल था उसमे एक सन्तान

नयन अश्रु याद करके रोते नहीं अब उसको कभी फिर यूँ
छत्रपति हो या सूरजमल या दिल्ली का पृथ्वी राज चव्हाण

अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से

Language: Hindi
1 Like · 340 Views
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