कविता सुपुत्र सूरज मल था जाटों की पहचान
भयाक्रांत मुगलों में थी उसकी वीरता भी एक पहचान
बदनसिंह डांगी का सुपुत्र सूरजमल जाटों की थी जान
जहाँ आभाव भी गर्दिशों में दम घोट रहे थे गला अपना
नयन अश्रु सुख गए थे तो भरतपुर से पैदा हुआ जवान
तोपें भी ना तोड़ पायी लोहगढ़ का किला जिसके यारों
जाटों का वो प्लूटो कहलाता राजा था वो भी एक महान
सूरज सा तेज जिसमें जिस्म अग्नि से बना हुआ जिसका
सूरजमल नाम जिसका स्वतन्त्र हिन्दू राज्य उसका निशान
ब्राह्मण की बेटी हरजीत ने खून लिखा खत से बचाले मुझे
वीर योद्धा हिंदुत्व के रक्षक तू है मेरे पिता तुल्य ही सम्मान
दिल्ली के लालकिले पे चढाई कर डाली बेटी के लिए फिर
ब्राह्मण के आँगन की नन्ही चिड़िया ऊँची उडी फिर उड़ान
इतिहास भले ही भूल जाए इस लोहागढ के लोहपुरुष को
पर नहीं भूलेगा कभी इस वीर योद्धा को ये मेरा हिन्दुस्तान
शेरनी का जिसने दूध पिया हो शेर ही कहलाता सदा वो
भारत माँ की बगिया की सूरजमल था उसमे एक सन्तान
नयन अश्रु याद करके रोते नहीं अब उसको कभी फिर यूँ
छत्रपति हो या सूरजमल या दिल्ली का पृथ्वी राज चव्हाण
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से