कविता– साथी सो न, कर कुछ बात
साथी सो न, कर कुछ बात।
यौवन में मतवाली रात,
करती है चंदा संग बात,
तारें छुप-छुप देख रहे हैं, उनकी ये मुलाकात।
साथी सो न, कर कुछ बात।
झींगुर की झंकार उठी,
रह-रह, बारंबार उठी,
चकवा-चकवी की पुकार उठी, अब छोड़ो न मेरा हाथ।
साथी सो न, कर कुछ बात।
लज्जा से मुख को छुपाती,
अधरों से मधुरस टपकाती,
विहँस रही मुरझाई पत्ती, तुहिन कणों के साथ।
साथी सो न, कर कुछ बात।
— क़मर जौनपुरी