कविता – “सर्दी की रातें”
कविता – “सर्दी की रातें”
आनंद शर्मा
जाने कितने
बेघरों को
ये चिंता
खा रही है
सर्दी की ये रातें
फिर से
क्यों आ रही हैं ?
क्या घट जाता
जो न पड़ती ठंड
गरीब को आख़िर
किस बात का दंड।
साल दर साल
न जाने
कितनी जिंदगी
इस ठंड से
ठिठुरी जा रही हैं।
सर्दी की ये रातें
फिर से
क्यों आ रही हैं।
उठो ,
चलो एक जिंदगी
बचा लेते हैं
एहसासों की रूई पर
परवाह का
गिलाफ चढ़ा लेते हैं।
बता दें सर्दी को
कि अब इंसान को
इंसानियत
बचा रही है।
चाहे कितनी ही सर्दी
क्यों न आ रही है
चाहे कितनी भी सर्दी
क्यों ना आ रही है।