कविता –विरहणी
विरहणी
ऐ पवन ! जरा रुकजा मेरे संगसंग चल।
राहें भूली मैं प्रियतम राह दिखाते चल।
राह पथिक बनके जरा धीरे –धीर चल।
मै आई दूर देश से स्वपन्न सुनहरे तू चल।
वो देखो!मेरी सखी वहाँ तू देखते चल
आधी बतियाँ भूली तू मेघ संंग चल।
मेघघनछाये ऐ मेघ !जरा रुकजा अब।
पथिकबनके आगे भूली राहें दिखा अब।
कहाँ है परदेशी तेरा कहाँ जाना अब।
पवनने छलके भेजा मेरे संगि अब।
आधी राहपे छोड़ि चला अपने राहपे अब।
हे विहरणी पीछे जा लौट आए तरस अब।
झूठा नसमझना शहीदों में गिनती अब।
सज्जो चतुर्वेदी स्वरचित