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29 Sep 2018 · 1 min read

कविता- वह आदिवासी है (कवि शिवम् सिंह सिसौदिया)

कविता- वह आदिवासी है
(कवि शिवम् सिंह सिसौदिया)

सँभाल रखी हैं परम्परायें
संस्कृति
आदिम व्यवस्था जिसने
वह भारत का वासी है,
वह आदिवासी है |

हुए विनाश
उन सभ्यताओं के,
नई नवीन
आभा प्रभाओं के
जो चल थे पड़े
विपरीत दिशा
प्रकृति की सीमा को लाँघकर,
कभी सुनामी- कभी त्रासदी
ने उनको है सबक सिखाया
मिटी नवीन सभ्यताएँ
पर
जो न मिटा अविनाशी है,
वह आदिवासी है |

मिटी महान मोहनजोदड़ो
इन्द्रप्रस्थ दिल्ली समान
नगरियाँ मिटीं
सब कालखण्ड में
उजड़ गये अनगिनत नगर
अट्टालिकाएँ प्राकार मिटे,
पर्यावरण से जो दूर हुए
उनके नाम और
निशान मिटे,
ना मिटा प्रकृति अभिलाषी हैं,
वह आदिवासी है |

जिसने धरोहरें हैं बचाईं
पर्यावरण सम्मान किया,
जो टिका रहा आदिम पर,
पर ना
तथाकथित उत्थान किया,
वह स्वायम्भुव का हरकारा
ले निजी सभ्यता
जिया रहा,
देकर अमरत्व जगत को,
बन रक्षक वह
विष को पिया रहा,
वह नहीं विलासी है,
वह आदिवासी है |

कवि- शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
सम्पर्क- 8602810884, 8517070519

Language: Hindi
2 Likes · 392 Views
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