कविता – लिवाज
लिवाजो की चमक-दमक,
इसमे सब शान ढूंढ़ते है
कीमती लिवाजो में अक्सर,
खुद की पहचान ढूढ़ते है।
इंसान लिवाज से नही,
क़ाबलियत से जाना जाता है
हुनर ज्ञान ही उसे खुद की,
सही पहचान दिलाता है।
बेजान मूर्ति को दुकानों पर,
सजे अक्सर देखा होगा
लिवाज उन मूरतों में केवल,
चकाचौंध लाता होगा।
साधारण दिखने वाला भी,
क़ाबलियत से पूर्ण होता है
अपने सामर्थ ज्ञान के दम पर,
खुद परिपूर्ण होता है।
नही आंकना लोगो को अब,
उनके सस्ते लिवाजों से
देखना है तो ज्ञान देखलो,
उनके मजबूत अरमानो से।
फटे मैले कपड़े हमेशा,
गरीबी का सामान नही होते है
सस्ते लिवाज में रहने वाले,
हरकोई बेमान नही होते है।
आज भी धोती-कुर्ते में
बसती है संस्कृति अपनी
इनका भी सभ्य समाज में,
आदर से सम्मान होता है।
लिवाज लाज-सम्मान के लिए,
पर्दा करने का एक सलीका है
देश-धर्म परिवेश में पहनावा का,
भिन्न सरीका होता है।
लिवाज को लिवाज रहने दो,
न मानो किसी की पहचान
सब को हरदम एकसा मानो ,
सबको जन्मा है एक भगवान।
लिवाज की परवाह न करके,
मिट्टी का अलगाव छूमता
सफलता जीवन पूंजी बने,
तरक्की का वो कदम चूमता।
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लेखक/ कवि
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
मोबाइल 9893573770