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15 Jul 2024 · 1 min read

कविता – ” रक्षाबंधन इसको कहता ज़माना है “

शीर्षक – ” रक्षाबंधन इसको कहता ज़माना है ”

देखो कितना….. दिन ये सुहाना है ।
रक्षाबंधन इसको कहता ज़माना है ।।

नेह की डोर से बहन रिश्ता सजायेगी ।
भाई की कलाई पर राखी इठलाएगी ।।
शहद सी मिठास फ़िर घुलेगी रिश्तों में ।
दिखावा नहीं जो बंट जायेगा हिस्सों में ।।

प्रण रक्षा का अब हर भाई को निभाना है ।
रक्षाबंधन इसको…….. कहता ज़माना है ।।

अस्मिता पर बहन की आँच न आने देंगे ।
विश्वास को उसके हम व्यर्थ न जाने देंगे ।।
ग़मों को उसके…. हम अपने सर ले लेंगे ।
उसको अपनी सारी ख़ुशियां हंसते हंसते दे देंगे ।।

बहन के जीवन को सुरीला सावन बनाना है ।
विश्वास के तिलक का…. हमें मान बढ़ाना है ।

रक्षाबंधन इसको……….. कहता ज़माना है ।।

©डॉ. वासिफ़ काज़ी ( रचनाकार )
©काज़ी की क़लम

28/3/2 , अहिल्या पल्टन, इक़बाल कॉलोनी
इंदौर , मध्यप्रदेश

Language: Hindi
75 Views
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