कविता – ” रक्षाबंधन इसको कहता ज़माना है “
शीर्षक – ” रक्षाबंधन इसको कहता ज़माना है ”
देखो कितना….. दिन ये सुहाना है ।
रक्षाबंधन इसको कहता ज़माना है ।।
नेह की डोर से बहन रिश्ता सजायेगी ।
भाई की कलाई पर राखी इठलाएगी ।।
शहद सी मिठास फ़िर घुलेगी रिश्तों में ।
दिखावा नहीं जो बंट जायेगा हिस्सों में ।।
प्रण रक्षा का अब हर भाई को निभाना है ।
रक्षाबंधन इसको…….. कहता ज़माना है ।।
अस्मिता पर बहन की आँच न आने देंगे ।
विश्वास को उसके हम व्यर्थ न जाने देंगे ।।
ग़मों को उसके…. हम अपने सर ले लेंगे ।
उसको अपनी सारी ख़ुशियां हंसते हंसते दे देंगे ।।
बहन के जीवन को सुरीला सावन बनाना है ।
विश्वास के तिलक का…. हमें मान बढ़ाना है ।
रक्षाबंधन इसको……….. कहता ज़माना है ।।
©डॉ. वासिफ़ काज़ी ( रचनाकार )
©काज़ी की क़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन, इक़बाल कॉलोनी
इंदौर , मध्यप्रदेश