कविता- मैं हूँ अश्रु उस भूमिहीन का (कवि- शिवम् सिंह सिसौदिया “अश्रु”)
कविता- मैं हूँ अश्रु उस भूमिहीन का
(कवि- शिवम् सिंह सिसौदिया “अश्रु”)
मैं हूँ ‘अश्रु’ उस भूमिहीन का,
जो दिखने में लगता निर्बल,
निर्बल होकर भी परम सबल,
उसकी हुंकार है परम प्रबल,
मैं हूँ उस ‘बलि’ का हरकारा
जिसके ‘वामन’ आये द्वारे,
मैं हूँ वो ‘अश्रु’ जिसके कारण
हरि बार बार अवतार धरे,
मैं स्यंदन रूप हूँ उसी दीन का,
मैं हूँ ‘अश्रु’ उस भूमिहीन का |
‘बलि’ भूमिहीन होकर भी प्रबल,
जिसके सँग थे ‘ईश्वर’ भी सबल,
जब बन आये ‘हरि’ रूप ‘राम’,
दीन्हा ‘सुग्रीव’ को भूमि धाम,
मैं उस निर्धन का नयन नीर
‘हरि-मित्र सुदामा’ की था पीर,
मैं निर्वासित ‘पाण्डवों’ की
अँखियों से बहने वाला था,
आकर ‘योगेश्वर कृष्ण’ ने ही
फिर आखिर मुझे सँभाला था,
मैं काल हूँ ‘कौरव’ पुण्यक्षीण का,
मैं हूँ ‘अश्रु’ उस भूमिहीन का |
-कवि शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
सम्पर्क- 8602810884, 8517070519