” कविता मेरे बस की नहीं “
” कविता मेरे बस की नहीं ”
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हमें कवि और लेखक की श्रेणी में मत लाओ ।हम जैसे हैं अपना समझकर हमको स्वीकार कर लो।हम तो अपनी व्यथाओं और खुशिओं के उद्गार को व्यक्त करना जानते हैं ।हमें यह विधा अच्छी लगती हैं और इसको हम भली -भांति पहचानते हैं।बातें जो हमको लोगों को बतानी पड़ती है ।उनको अपने ढंग से कहने का सलीका सीखा के वे समझ जाये तो भला हो उनको नहीं तो उसी बातों को दुहराकर समझनी पड़ती है।हम निः संकोच प्राकान्तर से अपनी बातें कहते हैं ।कोई बातें जो ह्रदय को छू लेती है उसे कह देते हैं।शालीनता ,शिष्टाचार और माधुर्यता के विभूत को अपने आनन् में लगाये रहते हैं ।व्यंग और परिहासों के परिधानों को अपने अंगों में अहर्निश हम लपेटे रहते हैं।लेखनी ,कविता में हमारी भाव -भंगिमा ,ताल -लय और अलंकारों की कमी हो सकती है ।पर सन्देश जो ह्रदय के कोर में रहता है हर क्षण उसकी झंकार कानों में ही गूंजती है।इस विधा को कविता के श्रेणी में मत लाओ ।हम जैसे हैं अपना समझकर हमको स्वीकार कर लो।
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखंड
भारत