“ कविता मेरी जान से प्यारी “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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सुना था ,
उलझनों में ,
कविता भी गुम हो जाती है !
लाख उनको ,
आवाज दो ,
पर वह तो रूठ ही जाती है !!
रंग ,रूप ,
रस ,यौवन ,
सुंदरता की मूरत वो लगती है !
उसके ,स्वरूप ,
सहजता और
महजूदगी से कविता ही बन जाती है !!
भावना ,प्रेरणा ,
शब्दों के अलंकारों से
कविता का उपवन सजता है !!
सहज भाव ,
शृंगारों से ही सत्यम ,
शिवम ,सुंदरम का फूल खिलता है !!
कविता ,
प्रेमों की भूखी है
प्रेम सदा ही उनको करना होगा !
नित दिन
उसके रूप रंग को
आलंकारिक परिधानों से भरना होगा !!
कविता
की पूजा ,
हम करके उनके ही संग रहते हैं !
उनकी ही ,
आराधना करके
अपनी रचना को हम रचते हैं !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड