कविता मेरा संसार है
कविता मेरे हृदय की आवाज है
अप्रकट भावों का प्रकट संसार है।
मां की सी ममता व दुलार है
पिता की सीख का आधार है।
इसके साथ मैं रोती भी हूं
और फिर खुलकर हंसती भी हूं ।
कहीं बांट न पाये जो सुख दुःख
इससे ही सब कहती भी हूं ।
गर्मी के तपते दिवसों में
ये संध्या की पुरवाई सी है ।
शीत ऋतु की खिली धूप ये
बारिश अति सुखदाई सी है ।
नित मुझसे ये बातें करती
साहस मेरे मन में भरती ।
हाथ पकड कर रखती मेरा
मन का सब खालीपन भरती ।
मीत बनी ये कविता मेरी
ये मुझको मैं इसको पढ़ती ।