कविता- भूमिहीनों का सत्याग्रह
भूमिहीनों का सत्याग्रह
कवि- शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
हम कब कहते कि हमें तुम्हारी सम्पति अपरम्पार मिले |
हम कहते हैं संतोष हमे बस जीने का आधार मिले ||
सुख सुविधाओं में है पता कि तुम जैसे भरमा जाते हैं ,
हम कब कहते हैं हमे महा अट्टालिकाएँ प्राकार मिले ||
हम कब कहते हैं रही लालसा सत्ता राज्य अखण्ड मिले |
हम कब कहते हैं तुम जैसा ही वैभव हमे प्रचण्ड मिले ||
अब सत्याग्रह इस बात पे है क्यों नहीं मिला अधिकार हमे,
हम निर्वासित पाण्डवों को भी छोटा सा भूखण्ड मिले ||
थी चाह नहीं सिंहासन की पर अब सिंहासन भी छोड़ो |
अपने ऊँचे प्रासादों से नीचे की ओर अब मुख मोड़ो ||
अब जनता आती वासुदेव सँग तुम कुरुनन्दन के द्वारे,
सत्याग्रह कुरुक्षेत्र में अब सत्ताई गर्वों को तोड़ो ||
वर्षों का ठण्डा पड़ा अनल अब आज देख सुगबुगा उठा |
सत्याग्रह के हुंकारों से बढ़ एक प्रभंजन चला उठा ||
इस जनता के पदचापों का यह भीषण घर्घरनाद सुनो,
मानो पीड़ा से आहत हो कोई गैरेय चल जगा उठा ||
सत्ताई दुशासन अब छोड़ो सत्ता तुमको ललकारा है |
नयनों के जल से बही बाढ़ ने सुनलो यही पुकारा है ||
दहकेंगे स्यन्दन में अनगिन अंगार चाप चढ़ आयेंगे,
सहकर पीड़ा का ताप प्रबल अब “अश्रु” बना अंगारा है ||
~शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
सम्पर्क- 8602810884, 8517070519
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