कविता भी बनी प्रोडक्ट है
अजब है दुनिया
यहाँ चलती का नाम ही गाड़ी है,
चलते-चलते ठहर गया जो
वो तो राहों का अनाड़ी है।
अब तो ये दुनिया
बनी ही बाज़ार है
आकर्षित आवरण युक्त सामग्री
की ही दुनिया क़द्रदार है।
चकाचौंध विज्ञापनों से
जो उत्पाद ही परोसता
वो ही उत्पादक तो
ग्राहकों को ही खिंचता।
इस बाज़ारी दुनिया में
कविता भी बनी प्रोडक्ट है,
सस्ते भावों से ही
श्रोताओं को करती ऐडिक्ट है।
सस्ती कविता ही
जब बिक जाए,
तो कवि गहन जगाने में
क्यूँ व्यर्थ ही समय गँवाए।
मंचों से बोल गया
वही कवियों में शुमार है,
सरस्वती साधक कवि
अब कहाँ असरदार है।
पर सरस्वती साधक कवि
न मोह जाल में पड़ता है,
अपने असंतुष्ट भाव संजोकर
कलम को तलवार करता है।
सस्ते कवि चन्द छंद गाकर
ही लुप्त हो जाते हैं,
सरस्वती साधक कवि,
इतिहास ही रच जाते हैं।