कविता – “बारिश में नहाते हैं।’ आनंद शर्मा
कविता – “बारिश में नहाते हैं।’
आनंद शर्मा।
ढलती उम्र में थोड़ा
बचपन लाते है
आओ बारिश में
आज फिर से नहाते हैं।
कागज़ की नाव,
उसमे अपने नाम का झंडा
इक चींटी को उस नाव का
मुसाफिर बनाते हैं,
बारिश में आज फिर से नहाते हैं।
एक आध बचे पेड़ पर
रस्सा डालकर ,
फिर से एक झूला बनाते हैं
और पटडी पर सबसे पहले,
तीज को झुलाते है
आज बारिश में फिर से नहाते हैं।
मांग साइकिल किसी बच्चे की
गलियों में बनी नहरों में,
बिना काम के यूँ ही
चक्कर लगाते हैं
आओ बारिश में आज फिर से नहाते हैं।
ढूंढो, कोई बचा हो जामुन का पेड़,
सावन की रिमझिम में,
पेड़ पर चढ़कर
कच्चे पक्के जैसे मिल जाएं
जामुन तोड़कर जीत का जश्न मनाते हैं।
आओ बारिश में आज फिर से नहाते हैं।
गर याद न भी हो माँ की रेसिपी
तो भी आड़े-टेढ़े, चकोर, तिरछे,
जैसे बन जाएं वैसे
पूड़े पकाते हैं।
और आम के अचार के साथ उसकी
दावत उड़ाते हैं।
आज बारिश में फिर से नहाते हैं।
और ये बारिश नहीं है
असल में…
ये बारिश नहीं है
ये तो ईश्वर ने खुशी के कुछ पल भेजे हैं..
अपनी अनंत दौड़ में से
कुछ पल सिर्फ अपने लिए चुराते हैं।
किसी पार्क की बैंच पर बैठकर,
बारिश के बोसे खुद को महसूस कराते हैं।
आज बारिश में फिर से नहाते हैं।