कविता : पिता
कविता : मेरे पिता
बड़ा पिता से नहीं धरा पर, जीवन देकर दी मुस्क़ान।
कभी भूल इच्छाएँ अपनी, दिए मुझे हर मीठे गान।।
जैसे पुस्तक मार्ग दिखाए, रही पिता की वैसी रीत।
जीवन का मतलब सिखलाया, और सिखाया करना प्रीत।।
ओज प्रेरणा ज्ञान बढ़ाए, पुस्तक ऐसी होती मित्र।
धर्म पिता का मैंने देखा, ऐसा अद्भुत और पवित्र।।
दर्द छिपाकर हँस लेता है, ख़ुश रखता पूरा परिवार।
मिला मुझे जो कुछ जीवन में, सब आशीर्वादों का सार।।
जीवन के कोरे काग़ज़ पर, लिखे पिता ने सब संस्कार।
जोश बढ़ाकर होश दिया है, दिया तरीक़े का आधार।।
चुका सकूँ थोड़ा ऋण भी मैं, करना प्रभु इतना उपकार।
रहे पिता के उपदेशों की, पग-पग जीवन में झंकार।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना