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28 Jan 2017 · 1 min read

कविता : पिता जी

परिचय
******
कविता पिता जी … एक बेटी के उद्गार हैं
जो वोह अपने पिता जी को आश्वस्त करते
हुए देती है ..पदिये ये सुन्दर उद्गार इस
कविता में …

कविता :पिता जी
*************

ठेठ चन्दन हूँ मैं
घिस कर महकूँगी
शुध्ध सोना हूँ
तपूँगी तो चमकूँगी
फूल ही तो हूँ आपकी
डाली का… अलग होकर भी
किसी हार की शोभा ही बनूँगी

पिता जी मैं ऐसा
कुछ भी नहीं करुँगी
जिसके लिये आपको
शरमाना पड़े … पछताना पड़े

पिता जी ……….
मैं … आपकी आत्मजा हूँ पुत्री हूँ
आपका “नाम ” करुँगी
आपकी कीर्ति
आकाश तक ले जाऊँगी
सब फख्र से पहिचानेगे मुझे
आपके नाम के साथ

पिता जी मुझे दो आशीष
सुख का उन्नति का
मेरे विचार ऊँचे हों
मेरे आचार व्यवहार उत्तम हों
मैं आपका खानदान का
देश का नाम ऊँचा करूँ

क्योकि पिताजी
आप देख लेना
मैं शुध्ध चन्दन हूँ
खरा सोना हूँ
महकता हुआ फूल हूँ
आपके उपवन का
आपकी गोद में पली बढ़ी
पढ़ी लिखी
अपने पैरो पर खड़ी

आप रखें “विश्वास ”
आपका “विश्वास ”
कभी नहीं डिगाउंगी
तमाम ऊचाँइयाँ
मैं आपके आशीर्वाद से
अवश्य पाऊँगी
अवश्य पाऊँगी
और मेरा आत्मविश्वास
होगा हिमालय सा
ऊँचा … अडिग
मैं जीवन मेँ
सफलता का
एक मिसाल हो जाऊँगी
एक मिसाल हो जाऊँगी

पिता जी
आप रखो विश्वास

मुझ पर
अपनी बेटी पर
जो केवल
जीतना जानती है
जीतना जानती है
और जीतने को ही अपना
आदर्श मानती है

(समाप्त)

Language: Hindi
431 Views

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