कविता : परिश्रम की तपिश
कविता : परिश्रम की तपिश
परिश्रम की तपिश लगा प्यारे।
मिले सफलता कभी न हारे।।
जो चाहेगा मिल जाएगा।
जीवन रूप बदल पाएगा।।
इसका का फल मीठा लगता।
पाकर इसको उर मन खिलता।।
इसे अर्चना पूजा मानो।
कर्मठ होकर गुण सब जानो।।
आकांक्षा जब हृदय समाए।
लक्ष्य मनुज का अगर लुभाए।।
तपिश मेहनत की लग पाती।
मुस्तक़बिल को है चमकाती।।
पाँव कभी पीछे न हटाओ।
सभी मुसीबत स्वयं भगाओ।।
आँधी में तुम दीप जलाना।
तभी विजय श्री हँसके पाना।।
तूफ़ानों से खेला करता।
ख़ुशियाँ का वह मेला भरता।।
तपिश लगाकर तड़प भगाना।
जीवन सूरज-सा चमकाना।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना