कविता : निकल भँवर से आनंद पाओ
इंसान फँसा दुनिया के भँवर में।
योद्धा बन जीते जीवन समर में।।
पार उतरता तीर लिए नज़र में।
बड़ा हौंसला होता इस असर में।।
माया मनको ठगती है यहाँ पर।
बुद्धि-भ्रष्ट कर देती घुमाकर।।
मायावी मृग से श्री राम छलते।
आम मनुज कैसे किस राह टलते?
चतुराई केशव जैसी बचाए।
जिसके आगे माया हार जाए।।
यत्न भक्ति साहस चिंतन सहारा।
करते रहना मिल जाए किनारा।।
आसान नहीं मुश्क़िल भी नहीं है।
हर संकट का मिलता हल यहीं है।।
सूझबूझ से अपने पग बढ़ाओ।
निकल भँवर से तुम आनंद पाओ।।
#आर.एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना