कविता तेरी ख़बर न पाकर दिल
हाँ पहली बार देखा जब तुम्हे ढा गई तू क़यामत प्रिये
मुझे अर्धविराम सा आधा कर गई कर कर घात प्रिये
दर्द साझा करने की इस दिल ने कहा तुझसे फ़िर मुझे
तुम मन की गाँठ खोलो करो इनसे कुछ तो बात प्रिये
अजीव कशमकश दिल में क्लान्त मुख निस्तेज काया
मेरी उमस भरी दोपहरी को दो शीतल भरी सौगात प्रिये
ए हिंदुस्तानी नारी हे शुभदे सुनलो आज मेरे मन की ये
मेरी अमावस की अवस्थाओं में बनो चाँद की रात प्रिये
नींद आँखों से उड़ी दिल जल जाता रहा मेरा कैसे कहूँ
तेरी ख़बर न पाकर दिल पर सहता कितने आघात प्रिये
तेरी ख़बर न पाकर दिल पर