कविता: तुम्हें तो याद करता
तुम्हें तो याद करता अपना ईश मानकर
है जिसने रखा मेरी यादों को संभालकर
जब थक गया था बियाबानों में भागकर
लौटाया सही राहों पे मुझको पुकारकर
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हंसती रही दुनिया मुसीबतों में डालकर
लहूलुहान कर डाला पत्थरों से मारकर
एक तुम आ गये सबको दरकिनार कर
भर लिया बांहों में मीत मुझको मानकर
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मिला गया नया आयाम तुमसे बोलकर
कर ली थी कुछ बातें दिल को खोलकर
लाए थे जिंदगी में सब उमंगें उछालकर
आंखों को मिले तृप्ति तुमको निहारकर
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फिर छा गये जीवन में तुम तो बहार बन
और घिर गई घटाएं तुम बरसे फुहार बन
धवल तो कर गये फिर जीवन निखारकर
नाच उठता मन मयूर पंखों को उघारकर
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हो गये संपूर्ण तुम्हारी भाषा को सीखकर
न किसी को देख पाये तुमको तो देखकर
सहम गए सागर तो गहराइयों को देखकर
रुकते गये सितारें तेरी चमक को देखकर
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मुरझा गए तो पुष्प तेरी महक को देखकर
पंक्षी भी चौक गये तेरी चहक को देखकर
झुका हुआ आकाश ऊंचाइयों को देखकर
तुम देकर गये पैगाम हवाओं को रोककर
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उल्लासों से भर गया अलपक निहारकर
भरा हर्ष से मुझको संघर्षों को विरामकर
गति को प्रगति मिली दामन को थामकर
रचता गया इतिहास समन्दर को पारकर
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पथ सुगम बना दिया फूलों को डालकर
चल तो दिया साथ में घर बार छोड़ कर
लोग खुद हट गये हार तुमसे से मानकर
और आ गया प्रकाश अन्धकार चीरकर
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हरदम खड़ा मिलूंगा प्रियतम के द्वार पर
अपेक्षा नहीं बची कुछ यहां तो पहुंचकर
आ गया तेरे पास में अहम को उतारकर
दीजिए शरण मुझे अपना दास जानकर
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रामचन्द्र दीक्षित’अशोक’