कविता :तितली
तितली
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तितली के पँख रंगीन और वो हसीन होती है
कली कली फूल फूल वो तो घूमती फिरती है
कितनी भी दुश्वारियां हों..तितली फिर भी उड़ती है
मन भले ही टूटे ..पर नयी तमन्नाएँ उसे उड़ाती हैं
फूलों का प्यार और भंवरों का साथ उसे सदा जिन्दा रखता है
रंग फूलों का और गाना भंवरों का उसको सदा संबल देता है
और इसी लिए तितली सदा रंगीन और हसीन ही …बनी ही रहती है
और फूलों के चक्कर काट ..रस पी .. भंवरों सँग वो खुश रहती है
लोगों के मन लुभाती आती .. और उड़ जाती है
इसीलिए तो वोह प्यारी ..रंगीन तितली कहलाती है..
(समाप्त)
विशेष परिचय
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(तितलियों को समर्पित..उड़ना और खुश रहना जिनका धर्म है..
उनके रंगीन पंख ..फूलों से निकटता और भँवरों का साथ उन्हें
एक विशिष्टता प्रदान करते हैं और वे बहुत लुभावनी बन हर
एक का मन मोहती हैं..वे सदा प्रसन्न रह कर फूल फूल घूमती
है..)
नोट :-पृष्ठभूमि
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मैंने आज बाग़ में घूमते हुए एक मरी हुई तितली देखी.. जिसके
पँख नुचे थे ..शायद किसी शरारती बच्चे की शरारत का शिकार
हो उसने जान गँवा दी..क्या सुन्दर दिखना या स्वतंत्र उड़ना
उसका गुनाह था..मन दुखी हो गया..और उपरोक्त लाईनें बन
गयीं.