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18 Nov 2018 · 12 min read

कविता जीवन से ही सीखी: गोपलदास नीरज

डॉ0 चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ कासगंज और एटा जनपद की साहित्यिक नब्ज के अच्छे हकीमों में स्थान रखते हैं, साहित्य की कलाबाजियां मैंने उन्हीं से सीखीं हैं। कासगंज के साहित्यकारों पर अक्सर डॉ0 गगन जी चर्चाएं किया करते हैं। डॉ0 गोपलदास नीरज उनके शोध कार्य में आलोच्य कवि रहे थे अतः शोध कार्य के दौरान भी जब मैं उनके घर जाता था तो नीरज जी की पुस्तकें देखने को मिलीं थीं, कुछ एक पढ़ने का भी सौभाग्य मिला। नीरज की पाती पढ़कर नीरज जी और साहित्य जगत को और अधिक करीब से जानने की उत्कंठा मन में बस चुकी थी। गगन जी का काव्य संग्रह “हम ढलानों पर खड़े हैं” पिछले वर्ष ही प्रकाशित हुआ था, जिसका लोकार्पण साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा के विश्वविख्यात मंच से 2017 में सम्पन्न हो चुका था। डॉ0 गगन जी पुस्तक भेंट करने एक दिन गोपलदास नीरज जी के आवास पर गए। पुस्तक भेंट करने के कुछ ही दिनों बाद नीरज जी ने जो समीक्षा लिखी थी , उसे ले जाने के लिए संदेशा भेजा तो समीक्षा लेने डॉ0 गगन जी पुनः उनके आवास पर गए। समीक्षा प्रकाशन के लिए ट्रू मीडिया के प्रधान संपादक श्री ओम प्रकाश प्रजापति जी को भेजी, उन्होंने अपने मई 2018 के अंक में उसे छापा भी, तो प्रजापति जी के मन में भी नीरज जी से मिलने उनसे साक्षात्कार करने की लालसा जाग उठी थी। जब डॉ0 गगन जी ने ट्रू मीडिया पत्रिका में नीरज जी की समीक्षा प्रकाशित होने और वह अंक नीरज जी को भेंट करने जाने की बात मुझको बताई तो मेरे मन में नीरज जी से मुलाकात की सोई हुई उत्कंठा पुनः जाग गयी, और मैंने डॉ0 गगन जी से नीरज जी के आवास पर साथ ले चलने का आग्रह किया, तो डॉ0 गगन जी भी तैयार हो गए।
यूं तो बहुत बार अखिल भारतीय स्तर के कवि सम्मेलनों में गोपलदास नीरज जी को देखा और सुना था परंतु वो दिन मेरे जीवन का अभूतपूर्व दिन था, जब मुझे उनका आशीर्वाद मिला। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से प्रकाशित मासिक पत्रिका ट्रू मीडिया के मई माह के अंक जो साहित्यकार लता यादव के विशेषांक के रूप में था, जिसमें कासगंज के वरिष्ठ साहित्यकार मेरे गुरु डॉ0 चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ के काव्य संग्रह “हम ढलानों पर खड़े हैं” की गोपलदास नीरज द्वारा लिखित समीक्षा प्रकाशित हुई थी। ट्रू मीडिया के इस अंक की कुछ प्रतियां प्रधान संपादक ओम प्रकाश प्रजापति जी द्वारा डॉ0 गगन जी को दिल्ली मुलाकात के दौरान सुधी साहित्यकारों को भेंट करने हेतु दी गईं थीं। डॉ0 गगन जी और मैं पत्रिका नीरज जी को भेंट करने के लिए निकल पड़े कासगंज से अलीगढ़। जीवन में यकायक कब किस क्षण खुशी मिल जाए कहा नहीं जा सकता, नीरज जी से मिलना मेरे लिए किसी प्रधानमंत्री से रूबरू होकर मिलने से कम नहीं था, तो खुश होना तो स्वाभाविक ही था। खुशी इतनी की शरीर का वजन हल्का महसूस होने लगा था क्योंकि पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। कासगंज से अलीगढ़ का रास्ता कब तय हो गया नीरज जी की बातें करते करते पता ही नहीं चला।
दोपहर को ठीक 12 बजे चिलचिलाती धूप में नीरज जी के आवास पर पहुंचे, उनके बरामदे की छांव में कुछ शीतलता का अनुभव हुआ। दरवाजा खटखटाया तो 8-9 वर्षीय बालक झांका, डॉ0 गगन जी ने इशारों में उसे बुलाकर पूछा “बाबाजी सो तो नहीं रहे?” बालक बोला “लेटे हैं सोए नहीं हैं” हम लोग तत्काल अंदर दाखिल हो गए। नीरज जी सफेद धोती कमर में और एक बनियान पहने थे तब। कमजोर शरीर होने के कारण ज्यादातर समय लेटे ही रहते थे। 93 वर्ष की अवस्था उम्र का आखरी पड़ाव होती है, हाथ-पांव , शरीर सब कुछ शिथिल हो जाते हैं। नीरज जी का शरीर भी किसी खंडहर की तरह हो चुका था परन्तु मन आज भी उस खंडहर के अतीत की तरह जवान ही था। आंखों में जीवन के उतार चढ़ाव के चलचित्र तैर रहे थे, माथे पर जीवन के प्रति निराशाओं के बीच आशाएं झुर्रियों के बीच से निकलने की कोशिश कर रहीं थीं। दर्द के कारण गला बेहद खराब था फिर भी बोल रहे थे और साफ बोल रहे थे। स्मृतियां जादूगरनी होती हैं, निकट जाकर डॉ0 गगन जी ने अपना परिचय बताया , पुराने संस्मरणों के माध्यम से नीरज जी के मन के तारों को छेड़ा तो सितार की भांति बजने लगे। सूखे होंठ और मूर्छित कपोलों पर अनायास ही मधुर मुस्कान तैर गयी। बीच बीच मे खिलखिलाहट भी सुनाई देने लगी। मैं पास में ही खड़ा नीरज जी के चेहरे की पल -पल बदल रही भंगिमाओं को अपनी नज़रों में कैद किए जा रहा था। तभी नीरज जी की दृष्टि मुझ पर पड़ी। मेरी ओर उंगली से इशारा कर डॉ0 गगन जी से पूछा ” ये कौन हैं?” डॉ0 गगन जी ने मुझे पास बुलाया और नीरज जी से कहा ” ये हमारा स्टूडेंट है नरेन्द्र, आपका आशीर्वाद लेने आया है” तुरंत मेरे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और बोले ” कुछ लिखते लिखाते हो?” मैं कुछ संकोच कर रहा था बोलने में तो डॉ0 गगन जी ने ही बताया कि ग़ज़ल संग्रह “सिसकते स्वर” छपवाना है (पांडुलिपियों की फ़ाइल बढ़ाकर नीरज जी को थमाते हुए), आपसे भूमिका लिखवानी है। नीरज जी ने फ़ाइल देखी बोले “पढ़ो” डॉ0 गगन जी ने एक एक ग़ज़ल पढ़कर सुनाई, बीच बीच में वाह वाह कहकर दाद भी देते रहे। बाद में मुझसे बोले कलम लाए हो? मैंने जेब से निकालकर कलम दिखाई तो बोले लिखो, और बोल बोल कर ही सारी भूमिका कागज पर लिखवा दी। फिर बोले नीचे जगह है? मैंने वह कागज उनको दिखाया तो बोले इधर लाओ और डॉ0 गगन जी की जेब से पेन निकालकर दो बार दस्तखत कर दिए बोले छपवा लो।जिज्ञासावश डॉ0 गगन जी ने पूछा कि दस्तख़त दो बार क्यों किए हैं तो जबाब दिया, गगन जी हाथ काम नहीं करते दस्तखत क्लियर नहीं आते तो दो बार कर दिए। एकाध बार तो साफ आएंगे कहकर हंस पड़े।
नीरज जी इतने सरल और सहज होंगे मुझे अनुमान न था पूरा घटनाक्रम मेरे लिए किसी स्वप्न से कम नहीं था जीवन में पहली बार खुली आँखों से सपना देख रहा था मैं। ट्रू मीडिया के प्रधान संपादक श्री ओम प्रकाश प्रजापति जी को मन ही मन धन्यवाद दे रहा था। अगर उन्होंने पत्रिका की प्रतियां भेंट करने को नहीं दीं होतीं तो मेरे ग़ज़ल संग्रह की भूमिका नीरज जी लिखते ये संभव न था। चलते चलते डॉ0 गगन जी और मैंने ट्रू मीडिया की पत्रिका नीरज जी को भेंट की, पत्रिका और ट्रू मीडिया के विषय में विस्तार से बताया। ट्रू मीडिया टीम से साक्षात्कार के लिए भी मिलने का समय लिया और अगली मुलाकात का अरमान लिए हम खुशी खुशी कासगंज लौटे।
आदमी दरअसल जैसा बाहर से दिखता है अंदर से वैसा नहीं होता, आदमी के अंदर एक आदमी और होता है जिसे खुद आदमी छिपाए रहता है, कभी कभी ही वह बाहर आ पाता है। मुलाकात के दौरान ज्ञात हुआ कि नीरज जी का जीवन ही उनका प्रेरणास्रोत रहा, उन्होंने अपने जीवन में गहरे गर्त भी देखे हैं , हिमालय की चोटी सी ऊंचाइयां भी, वे ढलानों पर भी खड़े थे। जीवन को संघर्षों की किताब कहने वाले नीरज जी इतने सरल हो सकते हैं किसी को हजम नहीं होगा। नीरज जी का मन गंगाजल है और उनका घर मानो हरिद्वार हो, जहां जाकर हर साहित्य का पुजारी डुबकी लगाकर धन्य हो जाना चाहता है। नीरज जी एक ऐसा व्यक्तित्व हैं जिनको देखने मात्र से ही शरीर में अपार ऊर्जा का संचार होने लगता है , आशाएं कमल की भांति अपनी पंखुड़ियां फैला देती हैं, निराशाओं भरे मन में उम्मीदों के दिए प्रज्ज्वलित हो उठते हैं। वे सबको चाहते हैं , वे किसी का धर्म और जाति नहीं पूछते, जो भी उज्जवल भाव से पहुंचता है किसी को निराश नहीं करते। नीरज जी आशावादी हैं उन्होंने अपने जीवन में बहुत बार निराशाओं का सामना किया परन्तु आशाओं के साथ जिए। उनकी एक कविता जो आदमी को निराशाओं से जूझने को प्रेरित करने के लिए–
“छिप छिप अश्रु बहाने वालो, मोती व्यर्थ बहाने वालो
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
वस्त्र बदल कर आने वालों, चाल बदल कर जाने वालों
चंद खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है
लाखों बार गगरियां फूटी शिकन न आई पर पनघट पर
लाखों बार कश्तियाँ डूबीं चहल पहल वो ही है तट पर
तम की उम्र बढ़ाने वालो लौ की उम्र घटाने वालो
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
कुछ सपनों के खो जाने से बचपन नहीं मरा करता है।
वे सबके सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद देते हैं उनका सिद्धांत देने का है आज भी समाज को दे ही रहे हैं। जीवन का एक लंबा अनुभव समेटे नीरज जी इन दिनों मैरिस रोड जनकपुरी स्थित अपने आवास पर रह रहे थे।
“जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना , अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।” कविता बचपन में प्राथमिक शिक्षा के दौरान बड़े चाव से पढ़ा करता था। तब नीरज जी से मिलना है, उनसे बात करनी है, उनको साक्षात देखना है , ये खयालात कभी मेरे दिमाग में नहीं आए थे। उस दिन नीरज जी का हाथ मेरे सिर पर था ये देखकर खुद को गौरवान्वित महसूस किया। नीरज जी के चिंतन का फलक बहुत विस्तृत है उनकी इसी कविता से स्पष्ट झलकता है। वे संसार के समस्त जीवों के जीवन से अज्ञानता, अशिक्षा रूपी अंधकार को मिटाने की बात करते हैं, उन्होंने यहां जाति-धर्म, ऊँच-नीच सबको एक तराजू में तोला है, आपने सिर्फ समाज के कल्याण की कामना की है।
एकदिन ट्रू मीडिया के प्रधान संपादक ओम प्रकाश प्रजापति जी की आंखों में पल रहा नीरज जी से मिलने का सपना भी साकार होने का वक्त आ ही गया। गोपालदास नीरज के आवास पर जैसे ही ट्रू मीडिया और डॉ0 चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ की गाड़ियां रुकीं, वहां पल रहे दो देशी नस्ल के कुत्तों ने भौकना शुरू कर दिया, उनकी भाषा को समझना शायद हमारे वश में न था। हम ने अपने विवेक से ये अनुमान लगा लिया कि हमारे स्वागत में कोई गाना तो कम- से -कम नहीं गा रहे होंगे, या तो उनके आराम में व्यवधान हो गया या हमारे चेहरे उन्हें अपने से नहीं लगे। डरते-डरते जैसे -तैसे हम लोग उनके बरामदे में दाखिल हुए, डोर वेल बजाने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि कुत्तों के भौंकने से ही अंदर पता चल गया था कि बाहर कोई आया है। फिर भी दरवाजा खटखटाया। इसबार प्रमोद पुंढीर ‘प्यासा’ निकल कर आए। जब उन्हें बताया कि नीरज जी का साक्षात्कार लेना है, तो उन्होंने एक मिनट की कहकर दरवाजा बंद कर लिया। इस एक मिनट के इंतज़ार में पंद्रह मिनट से ज्यादा समय बीत गया , इस दौरान सैकड़ों प्रश्नों ने जन्म लिया और दफन हुए। सवालों के जबाब खुद ही ढूंढकर संतुष्ट होते रहे। तभी पुंढीर जी ने गेट खोला तो लम्बी गहरी सी सांस खींचकर ईश्वर का शुक्रिया अदा किया क्योंकि एकबार को तो ऐसा लगा था कि आज मुलाकात शायद संभव नहीं। प्रमोद जी ने नीरज जी को बताया कि ट्रू मीडिया वाले आए हैं और आपका इंटरव्यू लेना चाहते हैं, तुरंत बिस्तर पर लेटे लेटे खुद को उठा कर बैठाने का संकेत प्रमोद जी को किया, प्रमोद उनकी मौन भाषा को पढ़ने के अभ्यस्त हो चुके थे। बैठकर हम लोगों को बैठाने के लिए कुर्सियां लाने का इशारा किया। प्रमोद जी बिजली के करंट की तरह दौड़ -दौड़ कर एक के बाद एक आदेश का पालन कर रहे थे। कुर्सियों पर हम लोग जैसे ही बैठे फिर से पानी लाने का इशारा प्रमोद जी को किया, हम सब मूकदर्शक हो नीरज जी की इस शैली को केवल देख रहे थे। थोड़ी देर बाद खूंटी पर टंगे मजेंटा कलर के कुर्ते की ओर इशारा किया, अब हम उनकी भाषा के कुछ वर्ण समझने लगे थे अतः मैंने कुर्ता उन्हें थमा दिया, उन्होंने उसे पहनने की कोशिश की परंतु सफल नहीं हुए, डॉ0 गगन जी और प्रमोद जी ने कुर्ता पहनाया, पास ही डिब्बे में रखी बत्तीसी की ओर हाथ किया, प्रमोद जी ने डिब्बे से दांतों की बत्तीसी नीरज जी के लगाई। सज धज कर नीरज जी जंच रहे थे। आंखों में चमक, मुस्कराते चेहरे पर तेज आ गया था उनके। बालों में कंघा करने के बाद उम्र में दस वर्ष की कमी सी दिखने लगी थी। सबसे पहले डॉ0 पुष्पा जोशी जी ने परिचय शुरू किया, नीरज जी उनसे काफी प्रभावित हुए मुस्कराकर पीठ और सिर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया। डॉ0 पुष्पा जी ने बताया कि अगले सप्ताह वे जय प्रकाश मानस जी के साथ हिंदी सम्मेलन में प्रतिभाग करने रूस जा रहीं है, उन्होंने बताया कि वहां उनकी पुस्तक “मन के मनके” का लोकार्पण भी है, तो बहुत खुश हुए। ओम प्रकाश प्रजापति जी ने नजदीक जा कर अपने बारे में बताया तो उन्हें भी सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद की कड़ी में मेरे बचपन में साथ पढ़ीं रेखा दीक्षित और आभा सिंह ने भी नीरज जी का आशीर्वाद लिया। ओम प्रकाश प्रजापति जी के साथ आए युवा साहित्यकार श्री राजेश मोडक जी ने भी आशीर्वाद लिया। अब इंटरव्यू के लिए कैमरा और डॉ0 पुष्पा जोशी जी तैयार थे। एक के बाद एक प्रश्नों का जबाब दे कर नीरज जी थक चुके थे, डॉ0 जोशी के बाद प्रजापति जी ने प्रश्नों का सिलसिला शुरू किया तो थकान के कारण बिस्तर पर लेट गए। इतनी देर तक कैमरे के सामने बैठकर बोलना इस अवस्था में बड़ी बात थी। नीरज जी के आवास पर ही ट्रू मीडिया ने कैमरा फिर से सेट किया और डॉ0 चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’, प्रमोद पुंढीर ‘प्यासा’, आभा सिंह, रेखा दीक्षित और मेरा भी इंटरव्यू रिकॉर्ड किया। सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली बात थी कि ओम प्रकाश प्रजापति जी ने जितना सम्मान नीरज जी का किया उससे कम सम्मान उनके केयर टेकर प्रमोद पुंढीर जी का भी नहीं किया, छोटे बड़े सबका सम्मान करने की प्रेरणा प्रजापति जी से मिली।
17 जुलाई 2018 को समाचार पत्र के माध्यम से पता चला कि नीरज जीअस्पताल में भर्ती हैं। 19 जुलाई को पता चला कि गीतों का सितारा साहित्य के नीलगगन से टूट कर गिर गया है, मेरे जीवन के गिने चुने असहनीय पलों में से एक पल था वह। 24 जुलाई 2018 को डॉ0 गगन जी उनके लघु भ्राता सतेन्द्र प्रकाश मिश्र और मैं अलीगढ़ नीरज जी के परिवार को सांत्वना देने पहुंचे। नीरज जी के सुपुत्र श्री मिलन प्रभात उर्फ गुंजन और पौत्र पल्लव नीरज उर्फ लवी अस्थिपुष्प विसर्जित करने हरिद्वार निकल चुके थे। घर पर नीरज जी की पुत्रवधू श्रीमती रंजना सक्सेना, श्रीमती रंजना सक्सेना जी की बड़ी बहिन श्रीमती आशा अस्थाना, नीरज जी के भतीजे श्री नरोत्तम जी , भतीजे की पत्नी श्रीमती सुशीला सक्सेना , नीरज जी के पर्सनल सेक्रेटरी रहे श्री राम सिंह राम प्रमोद पुंढीर आदि लोगों से मुलाकात हुई। मुलाकात के दौरान श्रीमती रंजना सक्सेना ने अपने अतीत की यादें जो नीरज जी से जुड़ीं थी हम से साझा कीं। उन्होंने बताया कि “जब मैं 18 या 19 वर्ष की थी अलीगढ़ से बस द्वारा जयपुर की यात्रा करनी थी क्योंकि जयपुर में हमारा परिवार रहता था, पिताजी जयपुर के नामी वकीलों में से एक थे। अलीगढ़ में रहकर मैं अपनी पढ़ाई कर रही थी। मेरे साथ और भी लड़कियां थी। इत्तफाक से नीरज जी भी उसी बस से यात्रा कर रहे थे। मैं उस समय नीरज जी को बिल्कुल जानती नहीं थी। जब नीरज जी ने मुझे देखा तो उन्होंने मुझे अपनी पुत्रबधू बनाने का स्वप्न अपनी आंखों में संजो लिया था। नीरज जी ने अपने साथ बैठे साथियों से कहा कि हमारे मिलन प्रभात के लिए ऐसी ही लड़की चाहिए, उनके साथियों में से एक ने कहा कि कायस्थों में ऐसी लड़की कहां रखी है, मुझे नीरज जी के हाथ में लगी पत्रिका ने प्रभावित किया तो मैंने नीरज जी से पत्रिका मांगी। नीरज जी को तो मुझसे बात करने का बहाना मिल गया , मेरे बारे में जानने के लिए उन्होंने मुझे अपने पास ही बैठा लिया। जब नीरज जी ने मुझसे मेरा नाम पूछा और जवाब में रंजना सक्सेना सुनते ही उनके मन का नीरज भी खिल सा गया, उनकी तलाश शायद पूरी हो गयी थी। उसके बाद और भी तमाम सवाल मुझसे करते रहे। मेरे कॉलेज के प्राध्यापकों के विषय में पूछते रहे, वे सबको जानते थे इसलिए इतना तो मैं जान चुकी थी कि ये आदमी मामूली तो नहीं हो सकता। जयपुर पहुंचकर दो तीन दिन बाद नीरज जी की ओर से अपने पुत्र के लिए मुझसे विवाह प्रस्ताव का पत्र पहुंचा। मेरे पिताजी अपनी वकालत में ज्यादा व्यस्त थे तो पत्र का कोई जबाब नहीं दे पाए। चार पांच दिन बाद हमारे पड़ोसी फुरसत के पलों में पिताजी के साथ बैठे थे पिताजी ने पत्र दिखाया तो कहने लगे वकील साहब आप ने अभी तक जबाब नहीं दिया पत्र का। नीरज जी देश के जाने माने गीतकार हैं , आप बड़े सौभाग्यशाली हैं घर बैठे इतना बढ़िया रिश्ता आया है, बिना देरी किये बात आगे बढ़ाओ, नहीं तो लड़का हाथ से निकल जाएगा। किस्मत बार बार दरवाजा नहीं खतकटाती है। पिताजी ने जबाब नही दे पाए थे, मन बना ही रहे थे कि नीरज जी स्वयं घर आ धमके शादी की बात करने के लिए। नीरज जी तो गले पड़ के रह गए थे । हमारी और नीरज जी के बेटे मिलन प्रभात जी की शादी तय हो चुकी थी, बाद में मिलन प्रभात जी देखने आए, शादी हुई और मैं नीरज जी के परिवार की सदस्य बनी।”
नीरज जी का परिवार भी बहुत सहज और सरल है। नीरज जी के गीतों की तरह परिवार के सदस्यों के मन भी बड़े कोमल हैं। मिलकर लगा कि अपने ही घर में बैठा हूँ। समय की विवशता ने विदा लेने को बाध्य कर दिया तो पुनः मिलने का वादा कर वापस कासगंज लौट आए।

नरेन्द्र ‘मगन’ कासगंज
9411999468

Language: Hindi
Tag: लेख
441 Views
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