कविता-जय जगत कहे चलो ( बिनोवा भावे जी के नारे- जय जगत से प्रेरित होकर लिखी गई कविता )
कविता-जय जगत कहे चलो
( बिनोवा भावे जी के नारे- जय जगत से प्रेरित होकर लिखी गई कविता )
जय जगत कहे चलो बढ़े चलो बढ़े चलो |
चेतना के मंत्र से सुपन्थ को गढ़े चलो ||
सबको ही मिले विजय नहीं किसी की हार हो |
छल कपट व हीनता का ना कोई शिकार हो ||
ठान विजय कामना शपथ पे तुम अड़े चलो |
जय जगत कहे चलो बढ़े चलो बढ़े चलो ||
भेदभाव ऊँच-नीच जाति की न खाई हो |
न कोई लड़ाई हो न कोई बुराई हो ||
आएँ जो बुराई भी तो साथ मिल लड़े चलो |
जय जगत कहे चलो बढ़े चलो बढ़े चलो ||
निर्वहन करें सभी कोई न भूमिहीन हो |
सब रहें प्रसन्नचित्त न कोई व्यक्ति दीन हो ||
आये कष्ट पर्वतों सा उसपे भी चढ़े चलो |
जय जगत कहे चलो बढ़े चलो बढ़े चलो ||
सब करें भलाई अरु न कोई बेइमान हो |
हर एक जन के मन वो रहे जो स्वाभिमान हो ||
एकता का मंत्र साथ मिल के सब पढ़े चलो |
जय जगत कहे चलो बढ़े चलो बढ़े चलो ||
-कवि शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
सम्पर्क- 8602810884, 8517070519