कविता : चंद्रिका
कविता-(3)
1 $–कविता: चंद्रिका –$
मन के भाव ललित हो जाएं,
एक छंद बनती है कविता ।
किसी भाव के शूल गड़े तो,
नवल बंध गढ़ती है कविता ।।
भावो का अतिरेक उमड़ता,
पन्नो पर चित जाती कविता ।
बुद्धि भाव का मेल मिले तो,
नव भाषा लिख जाती कविता ।।
मिट्टी से जब खुशबू उठती,
सरस् फूट आती है कविता ।
सागर से लहरे जब खेले,
हँसती खिलती गाती कविता ।।
खेतो में जब जलना होता,
पिघल स्वेद बनती है कविता ।
पत्थर जब हाथो से टूटे,
सुलग भूख बनती है कविता ।।
जब मन की चटखन सुनती,
दबे पांव आती है कविता ।
जब जब होती भटकन में,
ठहर ठहर छूती है कविता ।।
सन्नाटों से बातें होती,
एकाकी रिसती है कविता ।
जब पांवो में छाले फूटे,
पीड़ा से रोती है कविता ।।
सुशीला जोशी, विद्योत्तमा
9719260777