कविता// घास के फूल
नदी कभी जी भर नहीं नहाई गई,
गहराई और मृत्यु के भय से।
जबकि, मृत्यु किनारे पर भी थी।
जमीन पर भी।
कितना समय लगता है, एक हृदयाघात में ?
लंबे समय तक यात्रा से बचते रहे लोग।
मजबूरी में कभी जवाई जहाज,
ट्रेन और बस में बैठते हुए हाथ जोड़े।
सुनाई दिया, सफ़र सलामत हो।
इंशा अल्लाह!
छींकने की आवाज के साथ
घरों में सुनाई दिया शतजीवी भव!
छींक में रुकती साँस के साथ रहा होगा मृत्यु का भय।
करवा, अहोई, छठ, तीज, बड़सैत सबमें,
जीवन की कामना के भीतर
बहुत गहरे छुपा है, मृत्यु का भय।
पाषाण काल से आधुनिक काल तक,
टोटकों और सत्ता को खुश करने के उपायों में
छुपी है मृत्यु, भय।
मृत्यु, बरगद की तरह होती है,
जिसके ठीक नीचे घास के फूलों से उगे होते हैं
जीवन के छोटे छोटे अंश।
जिसने बरगद देखा, धागे लपेटे, माथा टेका।
मृत्यु से समय माँगा।
जिसने फूल देखे, जमीन चूमी, गीत गाए
प्रेम किया।
उन्होंने जान लिया कि जीवन के बाद
और मृत्यु से बहुत पहले प्रेम रखा है, भय नहीं।
शिवा अवस्थी