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23 Jul 2019 · 1 min read

कविता :– गुरु की है निर्मल काया

कविता :–गुरु की है निर्मल काया ।

गुरु की है निर्मल काया ।

खेतों की उपजाऊ मिट्टी

खुरद खुरद कर लाता ।

नवांकुर पौधों को उसमें

दोनों हाथ लगाता ।

पौधे की कोमल टहनी को

दर्द हुआ था भारी ।

पर विशाल वृक्षों की ऐसे

ही होती तैयारी ।

नन्हा सा इक पौधा पाकर

माली था हर्षाया ।

गुरु की है निर्मल काया ।

पौधे की पंखुड़ियों को

फिर माली उकसाता ।

संयम साहस सब्र सलीका

रह रह कर सिखलाता ।

संघर्षों के पतझड़ बीते

आदर्शों के सावन ।

और बसंत उपहार लिए तब

आई थी मनभावन ।

नया सबेरा नई बहारें

देख कुंवर मुस्काया ,

गुरु की है निर्मल काया ।

निर्मल निश्छल निष्कपट

निस्वार्थ है ममता ।

मां पर सीधा निर्भर होती

हर बच्चे की क्षमता ।

इस दुनियां के तौर तरीके

दाव पेंच सिखलाती ।

तब जाकर उन बच्चों में

लड़ने की हिम्मत आती

हर अबोध बालक को मां ने

पहला पाठ पढ़ाया ।

गुरु की है निर्मल काया ।

✍? अनुज तिवारी ” इंदवार “

Language: Hindi
1 Like · 575 Views
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