कविता/ गीत
ये ज़िंदगी का सार है
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कहो भी कुछ कभी कभी
जो बात है दबी दबी
ये मन से मन का मेल है
बहुत हसीन खेल है
ये प्यार है, खुमार है
ये ज़िंदगी का सार है !
तेरा मेरी बिसात क्या
ये आदमी की जात क्या
है जात सिर्फ प्यार की
नज़र के इक दुलार की
ज़माना अपना यार है
ये ज़िंदगी का सार है ।
नफ़रतों को कर परे
तमाम दिल हरे भरे
जियें जहाँ मे जब तलक
तो तर- बतर हों तब तलक
ये प्यार की फुहार है
ये ज़िंदगी का सार है ।
गीतेश दुबे ” गीत ”
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तुम्हे मुहब्बत हुई है हमसे
हमे बहुत तुम पे प्यार आया
न जाने कैसे कहाँ से हमने
नरम गरम ये बुख़ार पाया ।
भटक रहा था ज़फ़ा की गलियाँ
उदास दिन थे उदास रतियाँ
जो मेरे दिल को तेरी गली मे
वफ़ा मिली तो करार आया ।
न तूने समझा न मैने जाना
तू भी दीवानी मै भी दीवाना
नज़र मिली हैं हमारी जबसे
लगे है हम पर ख़ुमार छाया ।
” गीत “